तार्किक चर्चाओं के लिए जगह नहीं…
गुप्ता के मुताबिक, नूपुर शर्मा को तूफान के केंद्र में घसीट लिया गया।।। वह लिखते कि विवाद सिर्फ पैगंबर मोहम्मद की निजी तक सीमित नहीं है।। उनके अनुसार, टीवी डिबेट्स एक टिप्पणी को पैगंबर के राजनीति प्रेरित अपमान के उदाहरण रूप में पेश किया गया। एक बार गंभीर आरोप को इस्लामिक दुनिया की राजनीतिक कूटनीतिक ताकत मिल जाती है तार्किक चर्चाओं की जगह खत्म हो जाती है। बीजेपी सांसद अनुसार, ऐसा ही कुछ कार्टून्स विवाद में हुआ था और रश्दी की ‘सैटनिक वर्सेज’ से जुड़े बवाल में भी।।। गुप्ता हैं कि ‘ओवरहीटेड माहौल में नूपुर ने जो कहा, उसकी वैधता अप्रासंगिक जाती है।’
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बीजेपी नेता हैं कि ‘यह बहस का मुद्दा कि कि अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता अपमान करने का अधिकार निहित है या।। इस पर बहस हो सकती है कि जो जान-बूझकर गया या अनजाने में हुआ। नूपुर शर्मा मामले में जवाब जो भी हो, यह साफ कि अभी की लड़ाई पूरी राजनीतिक थी जिसमें बीजेपी का प्रतिनिधि प्रतिनिधि शामिल था।। इसलिए बेहद सवाल पूछना जरूरी हो जाता है: क्या राजनीति दायरे में धर्मशास्त्रों को शामिल किया चाहिए? ‘
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ISIS, तालिबान का दिया उदाहरण
गुप्ता कहते कि आदर्श स्थिति में, ऐसा नहीं होना चाहिए। उनके मुताबिक, राजनीति में की ताकत के सारे पहलू और सोसायटी शामिल होने चाहिए लेकिन धर्मशास्त्रों में दखल नहीं देनी चाहिए। वह ISIS और तालिबान उदाहरण देते हुए कहते हैं कि पर धर्म और सेकुलर राजनीतिक बीच की लाइन मिट गई।। गुप्ता लिखते कि संविधान में यूनिफॉर्म सिविल कोड लिए प्रेरित किया गया है मगर संगठन दावा करते हैं शरिया का उल्लंघन नहीं किया जा सकता।।
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